9827107530

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

मेरी खबर: संप्रदाय एक गुरु पम्परा

संप्रदाय एक गुरु पम्परा

विश्व के समस्त संप्रदाय एक गुरू परम्परा के वाहक हैं, यदि सभी गुरू अपने गुरूओं की मूल भावना को समझ लें व स्वीकार लें तथा उस मार्ग पर चल पडें तो कहीं कोई झगडा नही रह जाएगा । अत्याचार और अन्याय के लिये कहीं भी,किसी भी संप्रदाय में कहीं कोई जगह नही है । वास्तव में सत्ता के लोभी तथाकथित संतों नें बहुत खून बहा दिया है और तो और इसका लबादा पहने गुरू का मकसद ही बदल दिया है जिसकी वजह से लोग गुरू शब्द से ही दूर होने लगे हैं । वैदिक व्यवस्था सनातन और शाश्वत है जिसकी ओर लौट आने में ही मानव समाज की भलाई है । 


नैतिक शिक्षा से चाल चरित्र चिन्तन ठीक होता है .... यदि ये ठीक हो तो राष्ट्र निर्माण में मदद मिलाती है ..... सांप्रदायिकता को किसी गुरु या सदगुरु ने नहीं पैदा किया इस कार्य के लिए अनुयायी जिम्मेदार है .... कोटिल्य यदि कठोर नहीं होते तो भारत का निर्माण संभव नहीं होता ....पुरोधा वर्ग को सजग कर ही क्रांति या शांति जरुरत के अनुसार कि जा सकती है.....
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

हिंदुस्तान नपुंसक है ।

सोचो ... सोचो... और सोचो कि भला मैने ये तस्वीर क्यों लगाई या ऐसी  हेडलाइन्स क्यों बनाई । आप चाहे जो सोचें... भाई हमने तो सोचा कि जब यासिन जैसा देशद्रोही खुलेआम हमारे देश में हमारी ही ऐसी की तैसी कर रहा है और भाजपा के फेंकें जूते उस तक नही पहुंच पा रहे हैं तो हम तो नपुंसक ही हुए ना और जब हम ही नपुंसक है तो सारा देश नपुंसक नही हुआ क्या ( क्यों .. पाकिस्तान को आतंकीयों का देश कहते हैं कि नही)  । अब जरा कुछ बातें करें अपने देश की एक प्रजाती की जिसे हम हिजडा या किन्नर कहते हैं । क्यों कहते हैं ये नही सोचते ... बस कहते हैं .... । जब वे हमारी दुकानों पर या मकानों में या फिर ट्रेनों पर वसूली अभियान करते हैं तो हम क्या करते हैं .... खुदको उन हिजडों के आतंक से बचाने के लिये 10-20 रूपये दे देते हैं । बस.... कुछ वैसा ही तो हम काश्मीर के लिये कर रहे हैं । वो हिजडे हम पर, हमारे देश पर आँखे गडाते जा रहे हैं, हिंदुओं को निर्ममता से मार रहे हैं, तिरंगे को अपना मानने से इंकार कर रहे हैं और हम उन हिजडों को बजाय ये कहने के की मर्द हो तो सामने आकर लडो.... चुपचाप नपुंसकों की तरह  बैठ गये हैं । 
                                              हे मेरे प्यारे नपुंसक साथियों आओ अपने देश की खातिर अपने अंदर कुछ जोश उत्पन्न करने वाली दवाइयों का सेवन कर लें । चलो.. .....  शहिदे आजम भगत सिंह, उधम सिंह या फिर चंद्रशेखर आजाद की भस्म को तलाश करें और उस भस्म में खुदीराम बोस की जवानी को  कारगील के शहीदों के जुनून में मिलाकर पी लें ....... शायद ये दवा हमारे भीतर कुछ मधर्नगी का अहसास पैदा कर सके ।
                                              हाहाहाहाहाहाहाहा .... मैं कोई मजाक नही कर रहा हूँ .. लेकिन सचमुच आज अपने भीतर के मर्द को मरा हुआ पा रहा हूँ क्योंकि मेरे जीवन में मेरी पत्नि और  10 और 8 साल के अपनें  बच्चों की जवाबदारी है और उनका मेरे सिवाय कोई नही है, इस कारण मैं अपने साथ साथ उन सभी देश प्रेमियों के जज्बातों को समझ सकता हूँ जो अकेले परिवार के है और उन हिजडों के खुले आतंक को अपने परिवार की खातिर चुपचाप सह रहे हैं जो देश पर लगातार हमले कर रहे हैं ।
                                         खैर... 2 शब्दों के साथ अपना लेख समाप्त करता हूँ कि - धन्यवाद हमारी 100 करोड की नपुंसक जनता को जो 1000 नेताओं के रहमो करम पर अपना देश बेच चुके हैं । जय हिंद ।।
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

क्या चीज है मानवाधिकार संगठन

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन की जमानत की याचिका खारिज कर दी है. उन्हें माओवादियों की मदद के आरोप में उम्र कैद की सजा दी गई है जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है. सेन को भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में 2007 में गिरफ्तार किया गया. हाल में ही उन्हें देशद्रोह का दोषी करार देते हुए अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई. सरकारी वकील यह साबित करने में सफल रहे सेन माओवादियों को शहरी इलाकों में अपना नेटवर्क खड़ा करने में मदद दे रहे हैं. हाई कोर्ट में जमानत की याचिका खारिज हो जाने के बाद सेन के वकील महेंद्र दुबे ने कहा, "अब हमारे पास यही एक विकल्प है कि सुप्रीम कोर्ट जाएं."
                                                     जाएँ ,,, सुप्रीम कोर्ट ही नही अमेरिका में भी इस मामले को ले जाया जाये... लेकिन सोचें कि आखिर ये मामला है क्या जिसके लिये मानवाधिकार संगठन इतनी हायतौबा मचा रहा है । मानवाधिकार संगठन का अधिकार सीमित है उसे उन मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नही है जो कोर्ट में चल रहे हों .... लेकिन यहां तो मामला मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ता के ऊपर चल रहा है और छत्तीसगढ हाईकोर्ट के फैसले नें दुनिया भर में साबित कर दिया है कि किस तरह से मानवाधिकार संगठन की आड में माओवादियों (चीन) को मदद दी जा रही है । एक तरह से हमारी न्यायपालिका नें चीन को बेनकाब करने की कोशिश की है ।
                                               अभी तक   मानवाधिकार संगठन की आड में केवल इसाई मिशनरीयां (इनका मिशन होता है ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने धर्म से जोडना)  काम कर रही थी जो सेवा के नाम पर दूरदराज के गांव में जाकर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कर रही थी । इलाज तभी करती थी जब बीमार का पूरा परिवार इसाई बन जाता, बच्चों को तभी दाखिला देते जब उसके माता पिता इसाई बन जाते । जब उनका मिशन पूरा हो गया तो उनका सेवा भाव भी निपट गया तब उनकी जगह ले लिये माओवादियों ने और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में नक्सलियों तक हथियार पहुंचाने या सामान ढोने का काम शुरू कर दिये ।
                                                 ना तो धर्म परिवर्तन रूकेगा औऱ ना ही माओवादियों के हथियार गिरेंगे और  हमे इश बात से ही संतोष मिल जायेगा कि चलो बिनायक सेन को द्रेशदोरोह के आरोप में सजा तो मिली ।

बिनायक सेन की जमानत याचिका खारिज

 अदालत ने कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा की जमानत याचिका भी ठुकरा दी। इसी मामले में गुहा को भी उम्र कैद मिली है। अदालत ने कल इन दोनों की जमानत याचिका पर फैसा सुरक्षित रख लिया था। फैसला जस्टिस टीपी शर्मा और जस्टिस आर एल झांवर की खंडपीठ ने सुनाया। सेन की पत्नी एलिना ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी।

 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन की जमानत याचिका खारिज कर दी। सेन को निचली अदालत ने नक्सलियों से रिश्ते और देशद्रोह के मामलों में आजीवन कैद की सजा दी है। अदालत ने 15 पन्नों का फ़ैसला जारी किया है.
बिनायक सेन के साथ गिरफ़्तार व्यवसायी पीयूष गुहा की भी ज़मानत अर्ज़ी नामंज़ूर हो गई है.
पिछले 24 दिसंबर को रायपुर की एक निचली अदालत नें बिनायक सेन और उनके साथ दो अन्य लोगों को राज द्रोह का दोषी पाते हुए उम्र क़ैद की सजा सुनाई थी.
बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने कहा है कि इस फ़ैसले से उन्हें काफ़ी निराशा हुई है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगे उन्हें न्याय मिलेगा.
उन्होंने कहा कि अगर इंसाफ़ नहीं मिला तो वे भी उन करोड़ों लोगों में शामिल हो जाएँगी, जो इस देश में बिना इंसाफ़ के रहते हैं.
सजा के निलंबन और ज़मानत के लिए बिनायक सेन और व्यवसायी पीयूष गुहा की ओर से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में वकील महेंद्र दुबे नें एक याचिका दायर की थी.
इस याचिका पर 24 और 25 जनवरी को सुनवाई हुई थी जिसमे बिनायक सेन का पक्ष रखा गया था.
जाने-माने वकील और भाजपा राज्य सभा के सांसद राम जेठमलानी नें बिनायक सेन की ओर से बहस की थी.
बिनायक सेन और पीयूष गुहा के वकीलों की बहस के बाद न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आरएल झावर की खंडपीठ नें मामले की अगली सुनवाई नौ फरवरी को निर्धारित की थी जिस दिन बचाव पक्ष यानी सरकार की दलील सुनी गई.राम जेठमलानी का कहना है कि जिन दलीलों के आधार पर बिनायक सेन को राज द्रोह का दोषी बताया गया है उनके साथ कोई ठोस सबूत अभियोजन पक्ष ने पेश नहीं किए हैं
छत्तीसगढ़ की सरकार की ओर से अतिरिक्त महा महाधिवक्ता किशोर बहादुरी नें बिनायक सेन की ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन ने जो साक्ष्य पेश किए हैं, उससे साबित होता है कि बिनायक सेन प्रतिबंधित संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़े हुए हैं.
हलाकि बचाव पक्ष का कहना था कि बिनायक सेन के ख़िलाफ़ पेश किए गए सबूत अपर्याप्त हैं. .

अरेरेरेररेरेरेरेरेरेरे ... रूको भाई मैं कोई रंगभेदी नही हूँ .. केवल पत्रकार भी नही हूँ ... मैं तो एक अमीर देश की गरीब जनता के बीच का आदमी हूँ जो काले गोरे आदमीयों तक का भेद तो समझ नही सका है फिर भला काले सफेद धन के बारे में क्या समझता । लेकिन अब समझना चाहता हूँ क्योंकि मुझे अब बच्चों के स्कूल फिस पटाने में समस्या आने लगी है, सब्जी खरीदने की जगह केवल चाँवल पकाकर उसे नमक अचार डाल कर खा रहा हूँ, पेट्रोल ना भर पाने के कारण अब साइकिलिंग कर रहा हूँ , बिजली बिल ना पटा पाने के कारण अवैध रूप से बिजली खींच कर घर को रोशन कर रहा हूँ, .... मैं एक गोरा आदमी हूँ और बडी मुश्किल से अपना जीवन गुजार रहा हूँ ....
         लेकिन गुस्से से मेरा मन भर जाता है
                                           जब उस काले को देखता हूँ जिसके कुत्ते
डॉग ट्रेनर के घर कार से जाकर ट्रेंड हो रहे हैं, जिसका रसोइया कार में बैठ कर बाजार जाता है और गाडी भर कर सब्जी लाता है, उसके घर पर रोज दावतें हो रही है और मैं रात भर डीजे की आवाज सुन कुढता रहता हूँ , लेकिन मैं इसमें उस काले को दोषी नही मानता ............. मैं उसे दोषी मानता हूँ जिसे विदेश में काला कहकर रात के समय ट्रेन से उतार दिया जाता है और वह अपने पर हुए अपमान से कुढकर सारे हिंदुस्तान को चलती ट्रेन से उतार रहा है । अब वह सफेद और काले में भेद भाव कर रहा है और मुझ गोरे को छोड उस काले के साथ सफर कर रहा है ... जिसके घर पर बिना अनुमती घुसने पर गोली मारने का आदेश है और वह काला सा बदसूरत आदमी अपने कुछ हजार साथियों के साथ मुझ जैसे करोडों गोरों पर  राज कर रहा है ।
....
                                        हे मेरे गोरे भाइयों मेरी सहायता करो ... थोडी सी कालिख मेरे लिये भेज दो ताकि मैं भी काला बन जाऊँ ।

Writerindia.com : Politicianindia.com : Sakshatkar.com

.
 
© Copyright 2010-2011 मेरी खबर All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Politicianindia.com | Powered by Writerindia.com.