कांग्रेस चाहती है कि अयोध्या मामले से जितना हो सके उतना दूर रहा जाए और किसी निर्णय की बात आए तो वह अपने को सबसे पहले स्वयं को सुरक्षात्मक आवरण में ले ले इसके बाद उसका कोई नेता शिखंडी की तरह विपक्ष के हमलों का वार सहता रहे जिससे उसके महारथीयों को ज्यादा संघर्ष ना करना पडे ।
अयोध्या पर हाईकोर्ट के फैसले को भुनाने की सियासी कोशिशें भले ही शुरू हो गई हों, लेकिन कांग्रेस इसे कतई तूल नहीं देगी। इस मामले में पार्टी को हर हाल में बीच का ही रास्ता अपनाने में अपनी भलाई दिख रही है। यही वजह है कि जहां दूसरे राजनीतिक दल फैसले के बाद सक्रिय हो गए हैं, वहीं कांग्रेस को पक्षकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील किए जाने का इंतजार है।
खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले किसी भी राजनीतिक दल को अयोध्या मामले में विवादित भूमि के तीन हिस्सों में बंटवारे जैसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। कांग्रेस के लिए भी यह फैसला अप्रत्याशित ही है, जबकि संघ परिवार व भाजपा को इस फैसले ने बड़ी राहत दी है। समाजवादी पार्टी ने फैसले को निराशाजनक और मुसलमानों के लिए मायूसी वाला करार दिया है। ऐसे में, कांग्रेस को लग रहा है कि सपा, भाजपा या संघ परिवार फैसले को लेकर जितना ज्यादा सक्रिय होंगे, कांग्रेस और ईसाई समुदाय को उतने ही नुकसान का खतरा बढ़ेगा। लिहाजा, पार्टी कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे उस पर हिंदू या मुस्लिम समुदाय के पक्ष या विपक्ष में होने का ठप्पा लगे। इसीलिए पार्टी फैसले पर कुछ भी नही बोलना चाह रही है यहां तक की बेवजह चिल्ल पों मचाने वाले सोनिया के सिपहसलार भी मांद में घुस गए हैं ।
अयोध्या की विवादित जमीन के पक्षकारों में से ज्यादातर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे लेकिन पार्टी की आशा के साथ यह मामला आगे बढेगा इसकी संभावना कम ही है क्योंकि पहली बार देश के युवा मुस्लिम मंदिर के पक्ष में खडे दिख रहे हैं ।
कांग्रेस को आशंका है कि आगे चलकर यदि सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी, तो एक तरह से इसे संघ परिवार व भाजपा की नैतिक जीत के रूप में देखा जाएगा। साथ ही, अयोध्या में शिलान्यास व विवादित ढांचा विध्वंस को लेकर शुरू से सवालों के घेरे में रही कांग्रेस पर मुसलमान फिर से अंगुली उठाएंगे । लिहाजा, पार्टी इस मामले को सुलह-समझौते से ही हल कराने पर जोर देगी।
पार्टी की इसी सोच का नतीजा है कि उसने संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान की सराहना की है, जिसमें उन्होंने फैसले को हार-जीत के रूप में न लेने की बात कही थी। इतना ही नहीं, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह का वह बयान भी कांग्रेस के पक्ष में है, जिसमें उन्होंने सुलह-समझौते के लिए केंद्र से पहल की बात कही है ।
आखिर में लगता है कि अयोध्या का फैसला विश्वहिंदु परिषद की सांस्कृतिक लडाई की प्रारंभिक जीत की शुरूआत है इस विषय से सबक लेते हुए प्रबुद्ध वर्ग को निर्णय लेना चाहिये कि तमाम हिंदु धार्मिक स्थलों के पेंच को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लेने में ही देश की भलाई है ।
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