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संप्रदाय एक गुरु पम्परा

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

विश्व के समस्त संप्रदाय एक गुरू परम्परा के वाहक हैं, यदि सभी गुरू अपने गुरूओं की मूल भावना को समझ लें व स्वीकार लें तथा उस मार्ग पर चल पडें तो कहीं कोई झगडा नही रह जाएगा । अत्याचार और अन्याय के लिये कहीं भी,किसी भी संप्रदाय में कहीं कोई जगह नही है । वास्तव में सत्ता के लोभी तथाकथित संतों नें बहुत खून बहा दिया है और तो और इसका लबादा पहने गुरू का मकसद ही बदल दिया है जिसकी वजह से लोग गुरू शब्द से ही दूर होने लगे हैं । वैदिक व्यवस्था सनातन और शाश्वत है जिसकी ओर लौट आने में ही मानव समाज की भलाई है । 


नैतिक शिक्षा से चाल चरित्र चिन्तन ठीक होता है .... यदि ये ठीक हो तो राष्ट्र निर्माण में मदद मिलाती है ..... सांप्रदायिकता को किसी गुरु या सदगुरु ने नहीं पैदा किया इस कार्य के लिए अनुयायी जिम्मेदार है .... कोटिल्य यदि कठोर नहीं होते तो भारत का निर्माण संभव नहीं होता ....पुरोधा वर्ग को सजग कर ही क्रांति या शांति जरुरत के अनुसार कि जा सकती है.....
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