अदालत ने कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा की जमानत याचिका भी ठुकरा दी। इसी मामले में गुहा को भी उम्र कैद मिली है। अदालत ने कल इन दोनों की जमानत याचिका पर फैसा सुरक्षित रख लिया था। फैसला जस्टिस टीपी शर्मा और जस्टिस आर एल झांवर की खंडपीठ ने सुनाया। सेन की पत्नी एलिना ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन की जमानत याचिका खारिज कर दी। सेन को निचली अदालत ने नक्सलियों से रिश्ते और देशद्रोह के मामलों में आजीवन कैद की सजा दी है। अदालत ने 15 पन्नों का फ़ैसला जारी किया है.
बिनायक सेन के साथ गिरफ़्तार व्यवसायी पीयूष गुहा की भी ज़मानत अर्ज़ी नामंज़ूर हो गई है.
पिछले 24 दिसंबर को रायपुर की एक निचली अदालत नें बिनायक सेन और उनके साथ दो अन्य लोगों को राज द्रोह का दोषी पाते हुए उम्र क़ैद की सजा सुनाई थी.
बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने कहा है कि इस फ़ैसले से उन्हें काफ़ी निराशा हुई है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगे उन्हें न्याय मिलेगा.
उन्होंने कहा कि अगर इंसाफ़ नहीं मिला तो वे भी उन करोड़ों लोगों में शामिल हो जाएँगी, जो इस देश में बिना इंसाफ़ के रहते हैं.
सजा के निलंबन और ज़मानत के लिए बिनायक सेन और व्यवसायी पीयूष गुहा की ओर से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में वकील महेंद्र दुबे नें एक याचिका दायर की थी.
इस याचिका पर 24 और 25 जनवरी को सुनवाई हुई थी जिसमे बिनायक सेन का पक्ष रखा गया था.
जाने-माने वकील और भाजपा राज्य सभा के सांसद राम जेठमलानी नें बिनायक सेन की ओर से बहस की थी.
बिनायक सेन और पीयूष गुहा के वकीलों की बहस के बाद न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आरएल झावर की खंडपीठ नें मामले की अगली सुनवाई नौ फरवरी को निर्धारित की थी जिस दिन बचाव पक्ष यानी सरकार की दलील सुनी गई.राम जेठमलानी का कहना है कि जिन दलीलों के आधार पर बिनायक सेन को राज द्रोह का दोषी बताया गया है उनके साथ कोई ठोस सबूत अभियोजन पक्ष ने पेश नहीं किए हैं
छत्तीसगढ़ की सरकार की ओर से अतिरिक्त महा महाधिवक्ता किशोर बहादुरी नें बिनायक सेन की ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन ने जो साक्ष्य पेश किए हैं, उससे साबित होता है कि बिनायक सेन प्रतिबंधित संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़े हुए हैं.
हलाकि बचाव पक्ष का कहना था कि बिनायक सेन के ख़िलाफ़ पेश किए गए सबूत अपर्याप्त हैं. .
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन की जमानत याचिका खारिज कर दी। सेन को निचली अदालत ने नक्सलियों से रिश्ते और देशद्रोह के मामलों में आजीवन कैद की सजा दी है। अदालत ने 15 पन्नों का फ़ैसला जारी किया है.
बिनायक सेन के साथ गिरफ़्तार व्यवसायी पीयूष गुहा की भी ज़मानत अर्ज़ी नामंज़ूर हो गई है.
पिछले 24 दिसंबर को रायपुर की एक निचली अदालत नें बिनायक सेन और उनके साथ दो अन्य लोगों को राज द्रोह का दोषी पाते हुए उम्र क़ैद की सजा सुनाई थी.
बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने कहा है कि इस फ़ैसले से उन्हें काफ़ी निराशा हुई है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगे उन्हें न्याय मिलेगा.
उन्होंने कहा कि अगर इंसाफ़ नहीं मिला तो वे भी उन करोड़ों लोगों में शामिल हो जाएँगी, जो इस देश में बिना इंसाफ़ के रहते हैं.
सजा के निलंबन और ज़मानत के लिए बिनायक सेन और व्यवसायी पीयूष गुहा की ओर से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में वकील महेंद्र दुबे नें एक याचिका दायर की थी.
इस याचिका पर 24 और 25 जनवरी को सुनवाई हुई थी जिसमे बिनायक सेन का पक्ष रखा गया था.
जाने-माने वकील और भाजपा राज्य सभा के सांसद राम जेठमलानी नें बिनायक सेन की ओर से बहस की थी.
बिनायक सेन और पीयूष गुहा के वकीलों की बहस के बाद न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आरएल झावर की खंडपीठ नें मामले की अगली सुनवाई नौ फरवरी को निर्धारित की थी जिस दिन बचाव पक्ष यानी सरकार की दलील सुनी गई.राम जेठमलानी का कहना है कि जिन दलीलों के आधार पर बिनायक सेन को राज द्रोह का दोषी बताया गया है उनके साथ कोई ठोस सबूत अभियोजन पक्ष ने पेश नहीं किए हैं
छत्तीसगढ़ की सरकार की ओर से अतिरिक्त महा महाधिवक्ता किशोर बहादुरी नें बिनायक सेन की ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन ने जो साक्ष्य पेश किए हैं, उससे साबित होता है कि बिनायक सेन प्रतिबंधित संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़े हुए हैं.
हलाकि बचाव पक्ष का कहना था कि बिनायक सेन के ख़िलाफ़ पेश किए गए सबूत अपर्याप्त हैं. .
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